भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

रात / नलिनीकान्त

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

झुग्गी-झोपड़ी वास्तें
लै केॅ ऐलै रात
शान्ति-सौगात ।
डुबी गेलै चुप्पेचाप
सन्नाटा में फुटपाथ
आवी गेलै अन्हरिया रात ।
बुढ़वा, रोगी, भिखारी केॅ
आजो नै
मिलेॅ सकलै दूध-भात ।
कतना बुतरू झुग्गी केरोॅ
कानि-कानि सुती गेलै
खाय केॅ माड़-भात ।
चनरमा कहै छै
भुखलोॅ-रुठलोॅ बुतरू सिनी केॅ
सरंगोॅ सें झात ।
भुखलोॅ लोगोॅ के माथा पर
रोशनी केरोॅ गमला
धन्य-धन्य बारात !
खुशी में माँतलोॅ
स्टार होटलोॅ रोॅ
नाँचोॅ सें भरलोॅ रात ।