भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
राधा-माधव-जुगल के प्रनमौं पद-जलजात / हनुमानप्रसाद पोद्दार
Kavita Kosh से
राधा-माधव-जुगल के प्रनमौं पद-जलजात।
बसे रहैं मो मन सदा, रहै हरष उमगात॥
हरौ कुमति सबही तुरत, करौ सुमति कौ दान।
जातें नित लागौ रहै तुव पद-कमलनि ध्यान॥
राधा-माधव! करौ मोहि निज किंकर स्वीकार।
सब तजि नित सेवा करौं, जानि सार कौ सार॥
राधा-माधव! जानि मोहि निज जन अति मति-हीन।
सहज कृपा तैं करौ नित निज सेवा में लीन॥
राधा-माधव! भरौ तुम मेरे जीवन माँझ।
या सुख तैं ड्डूल्यौ फिरौं, भूलि भोर अरु साँझ॥
तन-मन-मति सब में सदा लखौं तिहारौ रूप।
मगन भयौ सेवौं सदा पद-रज परम अनूप॥
राधा-माधव-चरन रति-रस के पारावार।
बूड्यौ, नहिं निकसौं कबहुँ पुनि बाहिर संसार॥