भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

राधा प्यारी दे डारोजी बनसी हमारी / मीराबाई

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

राधा प्यारी दे डारोजी बनसी हमारी।
ये बनसीमें मेरा प्रान बसत है वो बनसी गई चोरी॥१॥
ना सोनेकी बन्सी न रुपेकी। हरहर बांसकी पेरी॥२॥
घडी एक मुखमें घडी एक करमें। घडी एक अधर धरी॥३॥
मीराके प्रभु गिरिधर नागर। चरनकमलपर वारी। राधा प्यारी दे०॥४॥