भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
राधिके! तुम सौं होड़ लगी / हनुमानप्रसाद पोद्दार
Kavita Kosh से
राधिके! तुम सौं होड़ लगी।
हौं अनुरक्त रहौं या तुम नित रहौ सनेह-पगी॥
ठगौ मोय तुम प्रेम-अमिय दै, तुम ही जाउ ठगी।
लगन लगै मो में, या मेरी तुम में रहै लगी॥
सगबग सदा रहौं तुम में, या तुम ही रहौ रँगी।
रहौं सचेत प्रीति में हौं, या तुम नित रहौ जगी॥
मैं जीतूँ या तुम ही जीतौ, अब तौ बात दगी।
जो हारै सो स्वामि बनै, दै पद-रज समुद सगी॥