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राम!हौं कौन जतन घर रहिहौं? / तुलसीदास
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4(वन के लिये बिदाई-2)
राग सोरठ
राम!हौं कौन जतन घर रहिहौं?
बार बार भरि अंक गोद लै ललन कौनसों कहिहौं।1।
इहि आँगन बिहरत मेरे बारे!तुम जो संग सिसु लीन्हें।
कैसे पा्रन रहत सुमिरत सुत, बहु बिनोद तुम कीन्हें।2।
जिन्ह श्रवननि कल बचन तिहारे सुनि सुनि हौं अनुरागी।
तिन्ह श्रवननि बनगवन सुनिति हौं मोंतें कौन अभागी?।3।
जुग तसम निमिष जाहिं रघुनंदन , बदनकमल बिनु देखे।
जो तनु रहै बरष बीते , बलि कहा प्रीति इहि लेखे? ।4।
तुलसिदास प्रेमबस श्रीहरि देखि बिकल महतारी।
गदगद कंठ , नयन जल ,फिरि फिरि आवन कह्यो मुरारी।5।