भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
रामकृष्ण के अनुकूलप्रिय दोईमाछ की विधि / तोताबाला ठाकुर / अम्बर रंजना पाण्डेय
Kavita Kosh से
रज नहीं, केश, स्वेद, बरौनी की धूल
स्वामी को वश में करने के लिए
यह सब नहीं चाहिए किंचित भी
केवल अतीव अनुराग माँमोनी शारदा का
स्वामी को बालक बना लेता है जो
धोनेपाता डालके झालमूड़ी दे देती तो परमहंस
भक्तों से ब्रह्मचिंतन छोड़ केवल झालमूड़ी पर
ज्ञान होता
कोई-कोई तिथि बनाती दोईमाछ
श्यामल गाभी के दुग्ध का दोई करती
और पद्मवाले पुकुर की भेटकी माछ
सरसों तैल तरल स्वर्ण की भाँति आलोकित करता था
माँमोनी के मत्स्यनयन
अद्भुत सुबास उठता दस दिश में
रसोईघर के द्वार पर देवता आ लगते लुक-झुक करते
परमहंस भी वातायन से झाँकते, पूछते बारम्बार माँमोनी से
'क्या देर है ? क्या देर है ? शीघ्र करो न माँ'
जो भवसमुद्र से पार हो गया उसे एक मरी
मछली ने बाँध लिया अपने जाल में ।