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रामदास / सुनीता जैन

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रात रामदास गली में
मारा गया,
या रामदास
मारे जाने की आशंका से
बैठा रहा हाथ भींजे पत्नी का-

सुबह किन्तु सब कुछ वैसा था:

ग्वाले की धड़धड़ाती बाइसिकल
अखबार वाले का धप्प् से फेंकना,
हाँफती-पाँफती माँओं का बच्चों को
स्कूल की बसों तक ठेलना,
नौकर का उठते ही मन-मन
मालकिन को भद्दा-सा कोसना

रामदास मारा जाए
या मरने से बचा रहे, यह सोच-सोच बस

कवि-कम-जरनलिस्ट वह
ऊबा-सा कुर्सी पर
सिगरेट के छल्लों में, बैठा

रामदास की ‘क्राइसिस’ से
मन बहलाता रहा अपना