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रामधनी की दुलहिन / कैलाश गौतम

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रामधनी की दुलहिन
मुँह पर
उजली धूप
पीठ पर काली बदली है |

...रामधनी की दुलहिन
नदी नहाकर निकली है |

इसे देखकर
जल जैसे
लहराने लगता है ,
थाह लगाने वाला
थाह लगाने लगता है ,

होठों पर है हँसी
गले
चाँदी की हँसली है |

गाँव-गली
अमराई से
खुलकर बतियाती है ,
अक्षत -रोली
और नारियल
रोज़ चढ़ाती है ,

ईख के मन में
पहली-पहली
कच्ची इमली है |

लहरों का कलकल
इसकी
मीठी किलकारी है ,
पान की आँखों में
रहती
यह धान की क्यारी है ,

क्या कहना है परछाई का
रोहू मछली है |

दुबली -पतली
देह बीस की
युवा किशोरी है ,
इसकी अँजुरी
जैसे कोई
खीर कटोरी है ,

रामधनी कहता है
हँसकर
कैसी पगली है |