भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

रामू का ढाबा / ये लहरें घेर लेती हैं / मधु शर्मा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

अँधेरे की किरचों के बीच भी
पसरी भूख
कौन-सी भाषा पढ़ी जा सकती है
बेहतर जानता है ढाबे का मालिक
और खाने के साथ
कौन सी ख़बर हो जायका बढ़ाने के लिए
इसकी ख़ूब तमीज है उसे
जबकि खाने के साथ अखबार
भाषा की तमीज़ में न भी हो
तो भी ख़ूब

देश के किसी भी कोने-कूचे की भाषा में
हो सकती हैं ख़बरें
हालाँकि ख़बारों में नहीं होती भाषा
एक संवाद होता है स्वाद-भरा चटख
जो भूख जगाता है
भरे पेट की भी

भाषा असल में
भूख से लेती है जनम

ख़बर बनने से पहले कभी
रबर-सी बढ़ती
केंचुए-सी सरकती है भूख से

रामू का क्या!
उसे तो रोटियाँ बनानी और कमानी हैं
किसी भी भाषा
और भाषा के सवाल से पहले

भूख और रोटी की भाषा बड़ी होती है
वह है
तो भाषा भी खड़ी होती है।