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राम-नाम-महिमा / तुलसीदास/ पृष्ठ 4
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राम-नाम-महिमा-3
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दानव- देव , अहीस-महीस, महामुनि -तापस, सिद्ध-समाजी।
जग-जाचक, दानि दुतीय नहीं, तुम्ह ही सबकी सब राखत बाजी।।
एते बड़े तुलसीस! तऊ सबरीके दिए बिनु भूख न भाजी।।
राम गरीबनेवाज! भए हौं गरीबनेवाज गरीब नेवाजी।।
(96)
किसबी, किसान-कुल, बनिक, भिखारी ,भाट,
चाकर, चपल नट, चोर, चार, चेटकी।।
पेटको पढ़त , गुन गढ़त , चढ़त गिरि,
अटत गहन-गन अहन अखेटकी।।
ऊँचे-नीचे करम, धरम-अधरम, करि,
पेटही को पचत, बेचत बेटा-बेटकी।
‘तुलसी’ बुझाइ ऐक राम घनस्याम ही तें ,
आगि बड़वागितें बड़भ् है आगि पेटकी।।