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राम-लीला गान / 12 / भिखारी ठाकुर

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प्रसंग:

धनुष-यज्ञ के बाद श्री जनकनी ने राजा दशरथ को विवाह के लिए बारात लेकर आने का संदेश भेजा। बारात साजकर रास्ते में पड़ाव डालते हुए राजा दशरथ जनकपुर पहुँचे।

बाँचि कर पतिया, जबानी सुनि बतिया, राम-राम, हरे-हरे।
दूत के सबूत मजगूतिया, राम-राम, हरे-हरे॥
राजा दसरथ जी के हुलसत बा छतिया, राम-राम, हरे-हरे।
नेवतत जाति-परजतिया, राम-राम, हरे-हरे॥
अवध नगरिया से चलल बरिअतिया, राम-राम, हरे-हरे।
दिन-रात जात तिरहुतिया, काहे राम-राम, हरे-हरे॥

दिन राते अयोध्या से बरात जकपुर में कतहूँ एक रात दू रात पड़ाव पर जाए। छपरा में छव रात पड़ाव पर गइल।

दोहा:

एक रात दुई दिवस, जहँ, तहँ करत अड़ाव।
छपरा नाम परल तबहीं से, छव दिन पड़ल पड़ाव॥
कहत ‘भिखारी’ नाई चलत रहतिया, राम-राम, हरे-हरे।
मउज होखत अलबतिया, राम-राम, हरे-हरे॥