राम-लीला गान / 16 / भिखारी ठाकुर
प्रसंग:
विवाह-संस्कार की कुछ रस्मों का वर्णन।
राम नाम कहऽ नित मनवाँ में, घर भीतर में रहऽ चाहे बनवां में।टेक।
आइल बरात अगहनवाँ में, सादी होई सुदी पंचमी लगनवाँ में।
मंगल गवात बा अँगनवाँ में, गुरहथी होई चढ़त गहनवाँ में।
कहत ‘भिखारी’ गा के गानावाँ में, ध्यान ध के माता-पिता का चरनवाँ में।
घर-घर हलचल मचल नगरिया में, भल सुभ अगहन मासु हे!
मातु-पितु-पुरुखा के होत बा उचारन, जब भोर-साँझ होइ जासु हे!
सीता दुलहिन, राम दुलहा के नाँव ध के, मिथिला में मंगल गवासु हे!
चउका बइठलन जनक-सुनैना जी, जेहि बिधि पितर पुजासु हे!
नन्दिमुख श्राद्ध करि के, जेठन के पाँव परि के, कोहबर क के हुलसासु हे!
तब बरिअतिया दुआर पर लगलन बाजावा से बात ना सुनासु हे!
द्वारपूजा करि कर, वस्तु सब धरि कर, आसन लगल जनवासु हे!
कहत ‘भिखारी’ नाई कुतूपुर दियरा के, असहींलगन भहरासु हे!