भाग-7 उत्तर काण्ड प्रारंभ
राम की कृपालुता
(1)
बालि-सो बीरू बिदारि सुकंठु, थप्यो, हरषे सुर बाजने बाजे।
पल में दल्यो दासरथीं दसकंधरू, लंक बिभीषनु राज बिराजे।।
राम सुभाउ सुनें ‘तुलसी’ हुलसै अलसी हम-से गलगाजे।
कायर क्रूर कपूतनकी हद, तेउ गरीबनेवाज नेवाजे।1।
(2)
बेद पढ़ैं बिधि, संभुसभीत पुजावन रावनसों नितु आवैं ।
दानव देव दयावने दीन दुखी दिन दूरिहि तेें सिरू नावैं।।
ऐसेउ भाग भगे दसभाल तेें जो प्रभुता कबि-कोबिद गावैं।
रामके बाम भएँ तेहि बामहि बाम सबै सुख संपति लावैं।2।