राम तुम कैसे हो / प्रेम नारायण 'पंकिल'
कहतीं मुक्त कंठ से श्रुतियाँ शास्त्र संत अभिराम
तेरी द्युति से लज्जित होते कोटि-कोटि शूत काम-
राम तुम कैसे हो-
मुझको भी दिखला देते निज छवि माधुरी ललाम
राम तुम कैसे हों।।
कैसी हैं घुघुरारी अलकें ललित कपोल लोल लोचन।
कैसा है विधुमुख बिम्बाधर मृगमद-कुंकुम गोरोचन।
मन-मधुकर को दिखला देते पद-कंजारूण धाम
राम तुम कैसे हों ।।1।।
सहला कर बतला दो तेरे कर सरोज कितने कोमल।
शुष्क-कंठ को सींच बता कितना शीतल चरणामृत जल।
निज पीताम्बर की कर छाया मेटो मेरा घाम
राम तुम कैसे हो।।2।।
नख-चंदिका सुना है हरती भक्त-जनों के उर का तम।
अमृत वचन कर्ण-कुहरों को देते है विश्राम परम।
इस जूठन के लोभी का क्या हुआ विधाता वाम
राम तुम कैसे हो ।।3।।
झलका दो निज उर मणि-माला भक्त-विपति-भंजनि धनुहीं।
ध्वज-कुलशादिक पद की रेखा भरत लाल की प्रिय पनहीं।
बीत न जाये बात-बात में ही जिन्दगी तमाम
राम तुम कैसे हो ।।4।।
पद पलोटते मारूति-नंदन मुख निहारतीं जनक-लली।
अनुशासन माँगते लखन की शोभा होगी बड़ी भलीं
‘पंकिल’ तरस रहा झाँकी को दर्शन दो सुखधाम
राम तुम कैसे हो।।5।।