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राम रस पीवत पीर गमाई / संत जूड़ीराम

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राम रस पीवत पीर गमाई।
पियत पियाला प्रेम मगन हो दिन-दिन बड़त सवाई।
छके रहत महबूब खूब ये शबद सुरत धुमि छाई।
अकल अडोल सकल मत प्रगटी बुद्धि विवेक जगाई।
निरमल नाम निहारत निसि दिन दुबदा दूर भगाई।
लागी लगन मगन भयो मनुवा अध दालुद्र नसाई।
उर आनंद फंद सब नासै तन मन विखम जराई।
जूड़ीराम सतगुरु की महिमा समुझ-समुझ मुस्क्याई।