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राशनकार्ड के साथ वापस / तरुण
Kavita Kosh से
सर्दाये नवम्बर की संझा का
ढीला-पीला
करुण-करुण
अनमना सूरज
उदास कुंजों में ढला जा रहा है-
नहीं, नहीं-यह तो
मदरसे का एक पूरा दिन खराब कर
दादी का लाड़ला लछमनवा
‘क्यूं’ में खड़ा-खड़ा थक
पुलिस की चपत से गाल रँगाये,
रुआँसा, दिवाली की
चीनी नहीं मिलने पर
मुड़ा-तुड़ा, दग़ीला
तम्बाकुई राशनकार्ड व फटीचर थैला लिये
नंगे पाँव,
गैल-गैल,
अपने खपरैल
वापस चला आ रहा है!
1990