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राहें / नीरज नीर
Kavita Kosh से
राहें जो जाती हैं बाहर
वह जाती हैं अन्दर भी
जिसमें कोसों कोस की दूरी
हो जाती है तय
बैठे बैठे ...
तुम्हारी याद और तुम्हारा प्रेम
डूबो लेता है जब
अपनी गहराइयों में
बाएँ और दायें से बहने वाली
ठण्डी और गर्म हवाएँ
थाम लेती है
पूर्णमासी के सागर की
अनियंत्रित, अथाह लहरों को
कि जैसे एक घुड़सवार
साधता है अपने घोड़े को
और फिर जब बज उठता है नाद
दीखता है
चमकीला सूर्य
चमकता हुआ दो आँखों के बीच
जो लील लेता है
अहम् को
और सब हो जाता है शून्य
तब रह जाते हो बाकी
तुम और तुम्हारा प्रेम।
राह, जो जाती है अन्दर
ले जाती है अनंत तक।