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राह कठिन है जीवन की / रजनी मोरवाल
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राह कठिन है
जीवन की पर हार नहीं मानी है
पर्वत-सी ऊँची मंज़िल पर
चढ़ने की ठानी है
पीड़ा का अम्बार लगा
ज्यों लहरों की टोली है
सागर के तट पर जा बरसी
टीस मुई भोली है
जीवन नौका गोता खाए
अन्तहीन पानी है
देह किरचती शीशे जैसी
व्याकुल हैं इच्छाएँ
प्राणों में निष्ठुर आशाएँ
हरदम आग लगाएँ
अन्तर में साँसों के फेरे
मौन हुई वाणी है
सन्नाटे हैं बिखरे पथ पर
काँटो का घेरा है
चन्दनवन में ज्यों विषपायी
सर्पों का डेरा है
यादें मन को हरती हैं पर
दु:ख से बेगानी हैं