भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
रिश्ता होलै हाट / शिवनारायण / अमरेन्द्र
Kavita Kosh से
सतरंग सपना सँगें गुलमोहर रोॅ छाँव
खुललै आँख तेॅ रेत में पड़लोॅ हमरोॅ नाव।
चँदा-चँदा चाँदनी जंगल-जंगल मोर
जों अन्धियारी रात में ठनका ठनकै जोर।
जीवन तेॅ चलनै छिकै चलतैं चलोॅ अछोर
नेह-मेह केॅ चीरी केॅ देखौं चान इंजोर।
सागर-सगर प्यास छै सरंगे में विश्राम
जेकरोॅ किंछा जे रकम, पावै होने धाम।
जिनगी खारोॅ सागरे, दै छै प्यास बढ़ाय
जों जिनगी गंगा अमल, तहियो प्यास नै जाय।
प्यास-प्यास रोॅ खेल में लुटलै जिनगी हाय
सागर रहलै सागरे गंगे नै दिखलाय।
कीचड़मय रधिया दिखै, किराना जारम जार
सार सदी के बस यही, रिश्ता टा बाजार।