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रिश्तों की नमी / लीलाधर मंडलोई
Kavita Kosh से
सूख जाती है जिनके मन की नदी
उन्हें बचपन की नदी याद नहीं आती
वे भूल जाते हैं पानी के विस्मय को
पानी का अर्थ उनके वास्ते
उसका धुंधला सा बिम्ब
रह जाता है स्मृति में
जिनके रिश्ते टूट जाते हैं नदी से
उनके संबंध सूख जाते हैं अपनों से
वे ताउम्र तरसते रहते हैं
रिश्तों की नमी के लिए
वे अकेले पड़ जाते हैं
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