रीतिक-मारल / शिव कुमार झा 'टिल्लू'
सगरो वैभव - विज्ञान
नवल विहान
विकासक शान
मुदा! हमर घर मे-
शताधिक बरख सँ
एक्के तान
मात्र प्रीतिक बखान
रीतिक गुणगान
राजतन्त्रक अंत भेल
कतेक युग बीति गेल
पिछरल सँ विकासशील
फेर विकसितक श्रेणी मे
प्रवेश करैत सकल आर्यावर्त
मुदा अंग -मगध-मिथिला
एतवे नहि
प्रवासक नृपि भोजक भूमि सेहो
औना रहल अछि
नेना मूल साधन लेल
चिचिया रहल अछि
अधिरथ गाम-घ'र मे
भार्या केँ एकसरि छोड़ि
र'न बोन बिनु रथक
बौआ रहल अछि...
कंत नहि सदेह संत !
ने त' पूर्ण पलायन
आ ने पूर्ण आंचलिक
त्रिशंकु जकाँ
वाह रे व्यवस्था
तें ने सब गबैछ ...
मात्र रीतिक मन्त्र
ठकाइते रहलाहें
कतेको विद्यापति -मधुप
प्रगीते टा मे औनाइत रहलाहें
अमर-भानु मूक भेल
आरसी- यात्री चलि गेल...
विवशताक तान दैत
सगरो वाहवाही
मुदा ! के रहल सुनैत
जे बुझलक ओहो किछु नहि सिखलक
क्रांतिक कोनो आश नहि
प्रीति पौरुख केँ उपहास भेंटल
विश्वाश नहि...
भिखारी भीक्षा मंगिते विदा भेल
जाहि लुत्ती जरयबाक लेल
नेपाली नाओं बदलि लेलक
वैह लुत्ती आगि बनला पर
की गोपाल दिश तकलक ?
लेखनी त' समाजक सम-विषम चित्र
विवशताक अंश
जौं सोझाँ रहत कंश
की मारत नहि दंश
तें ने प्रेमक बरोबरि केनिहार रेणु
आंचलिक मात्र रहि गेल
शेषांश आडम्बर बहारल
हम सभ रहि गेलहुँ...
रीतिक मारल..
उपहासक जारल
तंत्रक पजारल
रीतिक अर्थ बेपर्द सिनेह नहि
व्यवस्थाक कुयोग
संबलक हठयोग
सभ करय उपभोग
हमरे घर वियोग ?
गाम -गाम घबाह भेल
बाजब सुड्डाह भेल...
गंगा-कोशी-बलान कमला
पुनपुन-फल्गु के कहय
विहारक सोतियो तंत्रक लेल
अगम अथाह भेल...