रुक्मिणी परिणय / दोसर सर्ग / भाग 1 / बबुआजी झा 'अज्ञात'
भूप समय शुभ बुझि बजौलनि सभा विचारक कारण
छल प्रस्ताव प्रसारित तनया लेल वरक निर्धारण।
मन्त्री बुद्धि विवेक विशारद अयला पूज्य पुरोहित,
पाँचो राज कुमार जनिक छल शैशव काल तिरोहित।
सुहृत सभासद हित चिन्तक जन छोट पैघ अधिकारी,
जन पद भरिक प्रमुख जन अयला जे जन विज्ञ विचारी।
अयला भूप विदर्भक अपनहुँ सहज दीप्त मुख मंडल,
देव सभा मे भेल उपस्थित होथि जेना आखंडल।
सिहासन आसीन नृपति मुख ताकथि सभहुँ सुघी जन,
प्रस्तुत कोन विचार करथि नृप अपन कहै छनि को मन।
बजला भूपति सुनब ध्यान दय सचिव सभ्य अधिकारी,
कन्यादानक योग्य भेल छथि सम्प्रति राज-कुमारी।
रूप शील गुण ज्ञान अलौकिक छथि सभ भाँति विनीता,
बूझि पड़थि की थिकी इन्दिरा विश्व विदित की सीता।
मान्य बन्धु जन! जेहन रुक्मिणी तदनुरूप वर चाही,
जेहन विदर्भक राज वंश अछि तेहन योग्य घर चाही।
हम चढ़ि चिन्तन चक्र सकल भूमंडल ताकि अबैछी,
राज कुमारिक लेल कतहु नहिं वर उपयुक्त पबैछी।
पुरुष सिंह यादव कुल भूषण केवल कृष्ण अँकैछा,
ई थिक हमर विचार व्यक्तिगत सभहक आगु रखै छी।
निज कन्या मन बझि अहूँ सभ अपन विचार सुनाबी,
मनोनीत जे होथि सभा सौ तनिकहिं पत्र पठाबी।
सुनि नृप वचन सभहुँ जन बजला नीक विचारल अपने,
भेल जेना साकार घराधिप! हमरा लोकनिक सपने।
हेत विदर्भक लेल सुशोभन यादव कुल सौ नाता
मनुज शिरोमणि कृष्णचन्द्र सन होथि हमर जमाता।
वनमे धूर्त्त सियार बहुत अछि करत सिंह समता को?
कंस निकन्दन यदुनन्दन सन अछि ककरो क्षमता की?
प्रस्तुत नीक विचार नृपालक हम सभ करी समर्थन,
सहज मधुर मधु तीत कहत के की पुनि व्यर्थ धमर्थन?
कृष्णक शौर्य अलौकिक सुनि सुनि दुग्ध धवल यशधारा,
देशक कते नरेश जरै छल जे लंगट लुटिहारा।
रुक्मी राजकुमार जेठ छल ताहि दलक अनुयायी,
फरकल टोर नयन युग लोहछल बाजल ओ अन्यायी।
पूज्य पिताजी, सचिव सभासद माननीय अधिकारी,
सभहुँ जनै छी, तनया परिणय प्रश्न भयंकर भारी।
कन्या दानक चूक जनम भरि स्वजन बन्धु उर दाही,
असन्तुष्ट ते हेतु निर्णयक भार स्वयं हम चाही।
राजकुमारिक लेल यदपि थिक उचित विचार स्वयंवर,
संभावित अछि किनतु नृपति सभ करता कलह भयंकर।
ते स्वयमेव कोनो नृप पुत्रक करब नीक निर्वाचन,
मंगल मूल विवाहक अवसर आबि सकत किछ आँचन।
बूढ़ भेला अतएव पिताजी भ्रम पथ पैर धरै छथि,
गौरव मान महत्त्व कीर्ति यश सभ किछु दूरि करै छथि।
महानन्द सुत थीक कृष्ण की वसुदेवक मन रंजन,
ई सन्देह अछैत कोना हम करब तकर अभिनन्दन?
वन वन गाय चरौलक माखन कयलक घर घर चोरी,
तकरा संग बिआहब समुचित हैत कि राजा किशोरी?
लय लय नाम सभक मुरली सौ दुपहर राति बजौलक,
निर्जन वनमे गोप वधू संग निर्भय रास रचौलक।
महा नृशंस निरंकुश केशव विश्व विदित अन्यायी,
कंसक सन नृपके अनचोकहिं कयलक भूतलशायी।
जरासंघ सौ हारि अन्त मे मथुरा छोड़ि पड़ायल,
वोर कोना के कहब कहू जे भागि द्वारका आयल?
स्वर्ण लता सन दीप शिखा सन सुन्दरि राज कुमारी,
नामहि ख्यात कृष्ण की कोइल को कोइला सन कारी।
नृप ययातिक शाप वंशवद नहिं नृप पद अधिकारी,
कोन वरक गुण बूझि पड़ै अछि मनमे सभहुँ विचारी।
सभसँ नीक हमर अछि भारत जते देश वसुधा पर,
गगनक तारा बीच जेना छथि सभ सौं नीक निशाकर।
भारतवर्षहुमे जत जनपद सभसौं चेदि चमत्कार,
रूप गंध सै सकल सुमनमे यथा सरोरुह सुन्दर।
तकर भूप दमघोष थिका जल दूध पृथक कय दै छथि,
ते ओ नित्य मनुज मानसमे हंस जकाँ विचरै छथि।
शत्रु दमन दृढ़ नीति विघोषित भेल सफल धरती पर,
धरणीशक ते गेल नाम दमघोष लिखल जन-जी पर।
कुल बलशील विभव नय निरुपम अनुपम जनिक प्रतिष्ठ
बुद्धिमान जन के न रखै छथि दमघोष क प्रति निष्ठा।
लय लय हाथिक झुंड उपायन देथि विपुल राजा गण,
मद जल सिक्त निरन्तर पंकिल राजसभा गृह आङन।
समर शूर शिशुपाल थिका प्रिय पुत्र तही दमघोषक,
शंभुक पुत्र षड़ानन अनुगुण विबुध पक्ष परि पोषक।
शंकर कोप अनल मे मन्मय जरला सभहुँ जनै छी,
से अवतरित अवनितल सम्प्रति हम शिशुपाल मनै छी।
नीति निपुण रण कोविद अभिनव खानि बुझ बलतेजक,
शिशुपालक गुण कहब कते हम जानथि विज्ञ विवेचक।
शिशुपालक सन पुत्र सात्वती पाबि न केवल धन्या,
कहथि भूमियो आइ भारतक वीर प्रसू के अन्या?
बूझि पड़ै अछि हमर बहिनिक सृजनक संग विधाता,
शिशुपालक दय जन्म भेल छथि योग्य वरक निर्माता।
चेदि कुमारक संग मुदित नृप तनया अपन विआहथु,
शिवक संग गिरिजा परिणय सम नव इतिहास रचाबथु।
राजथि जहिना शिशक रोहिणी जहिना रामक सीता,
तहिना राजथु बहिन रुक्मिणी शिशुपालक परिणीता।
जेहने कन्या बरक मनोरम जाड़ अवनि दुर्लभ आछि,
तेहने चैद्यक वंश प्रशंसित योग्य जनक गुण सभ अछि।
सैह कुटुम्ब बनै छथि जे बड़ हृद मित्र हितकारी,
दोगुन बान्हल गेंठक जकाँ सम्बन्ध हैतु दृढ़ भारी।
जखन विचार जेना जे कहबनि अविकल से ओ करता,
ने किछु चिन्ता करथु पिताजी ने हित चिन्तक जनता।