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रुक न जाना हार पर तुम / रंजना वर्मा

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रुक न जाना हार पर तुम।
तैर लो मझधार पर तुम॥

है भरा धोखा भरोसा
मत करो संसार पर तुम॥

मानते कब बात मन की
कह रहे सौ बार पर तुम॥

मोह के बन्धन न बाँधो
लोभ के सुख भार पर तुम॥

मत असद को भाव देना
रीझ कर मनुहार पर तुम॥