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रुख़े-निगार से है सोज़े-जाविदानी-ए-शम्अ़ / ग़ालिब

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रुख़-ए निगार से है सोज़-ए जाविदानी-ए शम्अ़
हुई है आतिश-ए गुल आब-ए ज़िनदगानी-ए शम्अ़

ज़बान-ए अहल-ए ज़बां में है मरग ख़ामोशी
यह बात बज़म में रौशन हुई ज़बानी-ए शम्अ़

करे है सिरफ़ ब ईमा-ए शु'लह क़िससह तमाम
ब तरज़-ए अहल-ए फ़ना है फ़सानह-ख़वानी-ए शम्अ़

ग़म उस को हसरत-ए परवानह का है अय शु'ले
तिरे लरज़ने से ज़ाहिर है ना-तवानी-ए शम्अ़

तिरे ख़याल से रूह इहतिज़ाज़ करती है
ब जलवह-रेज़ी-ए बाद-ओ-ब पर-फ़िशानी-ए शम्अ़

नशात-ए दाग़-ए ग़म-ए इशक़ की बहार न पूछ
शिगुफ़तगी है शहीद-ए गुल-ए ख़िज़ानी-ए शम्अ़

जले है देख के बालीन-ए यार पर मुझ को
न कयूं हो दिल पह मिरे दाग़-ए बद-गुमानी-ए शम्अ़