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रुनकी-झुनकी बेटी / जगदीश नलिन

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(एक)

एक थी बुधिया, ना, ना ऊ ना
जेकर ससुर आ मरद
कफ़न ला बाबू, भैया लोगन
के देहल
पईसा खाई-पी के डकार गए थे
बाकी ई बुधिया का करम
भी कम जरल-भठल नाही था
उसके जाँगर चोर मरद के
कवनो गतर में लाज-शरम नाही
हेहर, थेथर आ मन मारल रहा
पहलौठी बेटी बुचिया के
जनम के दुई माह होत न होत
गांव के लखैरन संगे परा गया
उ करेज कठेत बेईमान
बचल-खुचल रूपिया-पइसा
गहना-गुरिया सब झपट के लेई गया
रो-कलप के रह गई बुधिया बेचारी
धीरज धर आपन घर-दुआर
अपने बल पर चलाती रही
फजिर होते खुरपा ले
हेल जाती किसी कोड़ार में
या चली जाती नहर-आहर के छोरे
आ भर गठरी घास गढ़
लपकत-झपकत घर आ जाती
कुट्टी काटती, गांव-घर से बटोर के
लाये माड़-जूठन मिला
भर पेटा सानी-पानी भँइस को देती
उसे दूहती, दूध को खौलाती
दही जमाती फिर महती
घीव निकालती
घीव,छाछ बेचके अच्छी कमाई कर लेती
तीन ही तो परानी ठहरे
परिवार में उसके
बुधिया, बुचिया आ एगो भँइस
भँइस त भँइस थी अलबत्त
चीकन चाकन, गुलथुल
चकुनी हथिनी जस
भर बाल्टी दूध देती
बुधिया थी लमछर, सुनर, गोर,भक-भक
गठल, कसल देह-धाजा
मिस्सी से मांजे गए चमचम दाँत
तीस-बत्तीस की उमगल उमिर
माँग नहीं फारती
सेनूर नहीं लगाती
बाकि कमान जस भौहन के बीच
लाल टह टह टीका जरूर लगाती
बड़ नू रोबीली थी बुधिया
का मज़ाल कि कौनो मरद
ओहके मुँह लागे
कभी जब उसे आपन मरद याद आता
तो कजरा जाती बुधिया
आ कहती कि भाग गया
निगोड़ा त भाग गया
निरवंश थोड़े न हैं हम
एक ठो रुनकी-झुनकी बेटी जो है हमका
खूब पढ़ेगी-लिखेगी आपन
मेहनत-लगन से आ
बनेगी लछमी महारानी
जय हो माई भवानी

(दो)

आज अपने मा नाही
है बुधिया
माँग में दप-दप दमकत
भखरा सेनूर, सँइतल चुनरी में लकदक
गौरैया लेखा फुदक-फुदक
कभी आँगन त कभी चुहानी
भा बहार झाँक आती
घर का कोना-कोना चकाचक
बरबराती, बाप रे बाप चार बारिस बाद
हमार इयाद आइल उनका
अजगुत मरद रे भाई
नँहकुआ कोलकाता से आया था
राम बरन का भेजा बुधिया ला
सनेस आ बहुते सामान-जिनिस के साथ
चिट्ठी पढ़वाई तो बल-बल
आँखें बहने लगीं बुधिया की
कठकरेज लेखा तोहलोगिन के
अफतरा में छोड़ परा गइनी
थाह-पानी भी ना लेहनी
मरल मन भरमा देले रहे हमरा के
बचपने से टूअर-टापर जे रहनी
माफी तो क्या दोगी बुचिया की माई
बस मुसकाय दो तनिक नैना झमकाय के
कैसे-कैसे जूझा यहाँ तू का जानो
फूटपाथ पर सोया, रूखा-सूखा खाया
सब्जी मारकिट में
साहेब आ बाबू लोगन का
गाड़ी में टोकरी-टोकरी
साग-भाजी पहुँचाया
गाड़ी चमकाया
जूता पालिश किया
तब जाके एगो बड़हन होटल में
उर्दी-पेटी के साथ
दरावानी का काम मिला
अब पइसा भी अच्छा भेटाता है
माछेर झोर, भात, रोटी
आ तड़का दाल
खा-खा के मोट-झोट होई गया है
तुम्हारा जाँगर चोर मरद
फुरसत में मेटरो टरेन में जहाँ मन होता
जी भर घूम-फिर आता हूँ
धरती के नीचे हवा जइसन दौड़त रेल
आँखी झपकाओ और खोलो तो
धरमतला से भवानीपुर पहुँच जाओ
काली माई का परसाद
साथे शंखा, पोला ,चूड़ी
बंगाल का सेनूर, पिनखजूर
चाय आ बिस्कूट
मंगरा हाट का कपडा- लत्ता
सोना के सिकरी, कनफूल
चान्दी के बिछुआ, बुचिया ला पायल
कुछ पइसा भी
यही हमार कमाई का पहिलका सौगात बूझो
मरद तोहार दुनिया -जहान में ठाढ़ बा
मेहनत -मजदूरी ही बा आपन खेत -खरिहान
देखे के बा माई कब
गाँव आवे के सुतार बनावत बाड़ी
बुधिया त टेसुआ ढरकाए जा रही
का, का, ना जरल-कटल तोहरा के
कहनी
हाय रे करम ,बुचिया के बाबू
तू ही हमरा के दे द माफी
बुचिया त चार बारिस के हो गईल
दुखित गूरू जी से पढ़ाई -लिखाई होता
लवट आईल नीक दिनवा हमार औढरदानी
महिमा तोहार अपरम्पार माई भवानी