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रुपहली लटें / जय गोस्वामी / रामशंकर द्विवेदी

उम्र तो कुछ हो ही गई है,
फिर भी कभी-कभी
लगता है आज भी तुम बालिका हो ।

खोजा जाए तो
बाद में मिल जाएगी
केशों में रूपहली धार

खोजने का भार दिया था
कभी-कभी तुमने मुझे

मैं तो बालक नहीं हूँ,
इसीलिए आज स्तब्ध होकर रह गए हैं
रूपहली लटें खोजने वाले हाथ ।

तुम तो अब उठोगी ?
घर जाओगी ?
बरामदे में उतरने लगी है रात ।

मूल बाँगला भाषा से अनुवाद : रामशंकर द्विवेदी