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रुबाई / उदय कामत
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1
आशोब-ए-ग़म-ए-दिल की कहानी कह दो
हर्फ़ों में लिखो चाहे ज़बानी कह दो
है अर्ज़-ए-सुख़न ज़ख़्म-ए-कुहन का मरहम
बन पाए ग़ज़ल गर न रुबाई कह दो
2
क्यूँ हसरतें हैं अधूरी कुल्फ़त क्यूँ है
हम रह-रव-ए-शौक़ की ये क़िस्मत क्यूँ है
अब सहना सितम-नवाज़ी-ए-पैहम को
‘मयकश’ तिरी बन गई ये आदत क्यूँ है
3
गिरदाब-ए-फ़ना में यूँ उतारा किस ने
फिर सब्र-ओ-सुकूँ छीना हमारा किस ने
दर-पर्दा किया फिर वो इशारा किस ने
‘मयकश’ ये तिरा नाम पुकारा किस ने