रुहानी रिश्ते / राजकुमार 'रंजन'
अपने ही अपनों से रूठने लगे
रूहानी रिश्ते अब टूटने लगे
अब न रहे वंशी वट कुंजों की छाँव नहीं
अब न रहे पनघट तट गोकुल से गाँव नहीं
अब न रहे वृन्दा -वन गोधूली शाम नहीं
खो गया करीला वन महुआ औ आम नहीं
देशी पारिधान सभी छूटने लगे
व्यस्त है नई पीढ़ी मोबाइल पाने में
सब नसीहतें छूटीं इस नए ज़माने में
एम बी ए,इंजीनियर,डाक्टर का मस्तक है
संवेदनहीन हुये चेहरों की दस्तक है
बात के बतासे अब फूटने लगे
अपना परिवार कहाँ अपनों से प्यार कहाँ ?
जो नसीहतें देता जीवन का सार कहाँ ?
निर्णय अनचाहे हैं पेट भर अघाए हैं
हो जाते चारधाम क्षण बहुत गँवाए हैं
अपने ही अपनों को लूटने लगे
दर्द बहुत ताजा हैं वक्त का तक़ाजा है
आह जो अभी निकली वह न बजा बाजा है
उर में जो घाव लगे उनको जतलाना मत
दर्द भरे गीतों को मंचों से गाना मत
कड़वी सच्चाई हम घूँटने लगे