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रूपाकार / अजित कुमार

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लुजलुजे होते हैं जो
रच ही लेते हैं वे प्रायः
कोई न कोई कवच
आत्मरक्षा के लिए ।
जहाँ-जहाँ जीव है
वहाँ-वहाँ काया,
गोकि
जहाँ काया
वहाँ जीवन भी हो,
कोई ज़रूरी नहीं ।

मुमकिन है-
वहाँ केवल चूना, कोयला,
पत्थर, गारा हो ।