Last modified on 26 फ़रवरी 2014, at 15:46

रूह लम्हों में बिखरती रही / धीरेन्द्र अस्थाना

रूह लम्हों में बिखरती रही
जिश्म रास्ते बदलता रहा !

जिन्दगी ख्वाहिशों में सिमटती रही
दिल अंजामों से दहलता रहा !

सांसों पे पहरा था मौत का ,
वख्त मुश्कों में मचलता रहा !

वहम था जिन्दा है हर कोई,
यह तो सदमें में झुलसता रहा !