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रेतां रुळ जावै हेत / मोनिका गौड़
Kavita Kosh से
जिण बगत थूं
छुडाय’र आपरो पूणचो
म्हारै हाथ सूं
फरज सारू व्हीर होयो
म्हैं जोवती रैयी
थारै पगां सूं उडती खेह में
रूंध्योड़ो आपणो हेत
दो आंसूड़ा ढळक्या
अर
अलोप होयगी ही राधा
म्हारा कानूड़ा
इण लोही मांस रै खोळियै नैं
उखण्या भटकूं हूं
जुगां-जुगां सूं हर जलम
हेत, रेत रुळ जावै।