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रेत के बाँध से तू न कोई उम्मीद रख / शमशाद इलाही अंसारी

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रेत के बाँध से तू न कोई उम्मीद रख
हवा से न सही ये पानी से एक दिन बह जाएगा।

चेहरे, सपने, रिश्ते, आरज़ू और तम्मनाएँ
नब्ज़ के रुकते ही तेरे पीछे क्या रह जाएगा।

एक एक पत्थर-ओ-शीशे पर लिपटा रहा उम्र भर
वक़्त के बेरहम भँवर में सब यहाँ ढह जाएगा।

"शम्स" तेरी नज़र से जो गिरा अच्छा गिरा
बहुत सह चुका, अब ये जर्ब भी सह जाएगा।


रचनाकाल: 20.08.2003