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रेत पर घर बना लिया मैंने / कविता किरण
Kavita Kosh से
दिल में अरमाँ जगा लिया मैंने,
दिन ख़ुशी से बिता लिया मैंने।
इक समंदर को मुँह चिढ़ाना था,
रेत पर घर बना लिया मैंने।
अपने दिल को सुकून देने को,
इक परिन्दा उड़ा लिया मैंने।
आईने ढूंढ़ते फिरे मुझको,
ख़ुद को तुझ में छुपा लिया मैंने।
ओढ़कर मुस्कुराहटें लब पर,
आँसुओं का मज़ा लिया मैंने।
ऐ 'किरण' चल समेट ले दामन
जो भी पाना था पा लिया मैंने।