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रेत पर चमकती / गुलाब खंडेलवाल
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रेत पर चमकती मणियाँ
रह-रह कर मुझे लुभाती हैं,
पर मैं ज्यों ही उन्हें उठाने को झुकता हूँ
वे हवा में ओझल हो जाती हैं;
सच कहूं तो
यहाँ न रेत है, न मैं हूँ, न मणियाँ हैं,
केवल सन्नाटे में गूँजती ध्वनियाँ हैं.