भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

रेत (10) / अश्वनी शर्मा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

रेत आंधी बन
छा जाती है आसमान में
किसी अमूर्त्त चित्र
या
मनोवैज्ञानिक पहेली-सी

अर्थ तुम्हारे, भाव तुम्हारे
अनुभव तुम्हारे, छाप तुम्हारी
समझ लो जो जी चाहे
आरोपित कर दो जो जी चाहे।