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रेत / कन्हैया लाल भाटी
Kavita Kosh से
आखी रात
बरसतो रैयो आभौ
आखी रात
घुळती रैयी रेत।
आखी रात
पचतो रैयो हाळी
आखी रात
महकती रैयी रेत।
आखी रात
हाळी बीजतो रैयो बीज
आखी रात
उथळ-पुथळ मचावती रैयी रेत।
परभातियै तारै सूं
थोड़ो’क सांत हुयो आभो
परभातियै तारै सूं पैली
सुपनो देखती रैयी रात।
भखावटै-भखावटै
आय उमट्यो कागलां रो टोळो।
बैवती रैयी रेत
रेत अर पाणी रै साथै बैयग्या सगळा।