भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
रेप / श्याम किशोर
Kavita Kosh से
सड़क पर बिछी हुई थी
चांदनी
कुछ शोहदे
नशे में धुत
एक बेसुरे ब्रास-बैण्ड की धुन पर
रात-भर उस पर
उछलते-कूदते रहे
और छेड़ते रहे
भेड़ियों का भयावह संगीत
टुकड़ों में बँटी थी चांदनी
पत्तियों पर अनगिनत ओस की बूंदों में
सहमी थी चांदनी
लावारिस सड़क
अगली सुबह के इंतज़ार में थी।