याद रखना तुम प्रिये इस, रेशमी अहसास को। 
अंग में खिलते हुये इस, प्रेम के मधुमास को॥
मेदिनी भी खिलखिलाती, मद हवाओं से पिये। 
चाँदनी भी है जलाती, ताप सूरज का लिये॥
पवन चूनर में सरसती, ले प्रिये आभास को। 
अंग में खिलते हुये इस, प्रेम के मधुमास को॥
तन हुआ है दीप्ति कंचन, उर छिड़ा इक राग है। 
आभ हीरक मन समाया, हिय बसा अनुराग है॥
फूल सब बहका रहे हैं, अधर पंकज हास को। 
अंग में खिलते हुये इस, प्रेम के मधुमास को॥
दिन पखेरू बन गये हैं, स्वप्न सी हर रात है। 
शब्द सारे खो रहे हैं, नयन से अब बात है॥
हो मुदित मन झूमता है, सुन सखी परिहास को। 
अंग में खिलते हुये इस, प्रेम के मधुमास को॥
याद रखना तुम प्रिये इस, रेशमी अहसास को
अंग में खिलते हुये इस...