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रे मन जब जैसा तब वैसा / महेन्द्र मिश्र

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रे मन जब जैसा तब वैसा।
एई भंवर मांझे हरि लीला अजब तमाशा/रे मन।
कबहीं सोए लाली पलंग पर तोशक तकिया गर्दा-सा।
कबहीं सोए भुइँया चटइया तागे-तागे फासा/रे मन
कबहीं सोए महल अटा पर लगी बिछवना खासा।
कबहीं तो रखता माल खजाना गिन्नी असर्फी गासा।
कबहीं कउड़ी पास नहीं है सपना हो गए पइसा/रे मन।
कभी तो हाथी घोड़े चढ़ता कभी तो सपना अइसा।
कहे महेन्दर राम भजन कर फिर जइसा का तइसा