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रोक न पाओगे तुम मुझको / तारकेश्वरी तरु 'सुधि'
Kavita Kosh से
रोक न पाओगे तुम मुझको,
राह सतत चलती जाऊँगी।
जितनी बाधाएँ तुम दोगे,
मैं आगे बढ़ती जाऊँगी।
मत सोचो कुछ खबर नही है,
पथ में शूल बिछाने वालों!
हर पल आँख खुली रहती है,
मंजिल से भटकाने वालों!
दिशाहीन जितना भी कर लो,
ध्येय पथ को न बिसराऊँगी।
जितनी बाधाएँ तुम दोगे,
मैं आगे बढ़ती जाऊँगी।
मैं बहती नदिया की धारा,
मुझको पथ मिल ही जाएगा।
लेकिन थोड़ा खुद का सोचो,
चैन तुम्हें क्या मिल पाएगा।
जब तक मुझमें प्राण शेष है,
बाधा से लड़ती जाऊँगी।
जितनी बाधाएँ तुम दोगे ,
मैं आगे बढती जाऊँगी।
मैं खुद की ही ढाल बनूँगी,
जितने भी पत्थर बरसाओ।
तुमको पूरी आजादी है,
कर कोशिश जितना कर पाओ।
हर पत्थर पर धार बनाकर,
गीत नये लिखती जाऊँगी।
जितनी बाधाएँ तुम दोगे,
मैं आगे बढ़ती जाऊँगी।