रोज़मर्रा / सुनील श्रीवास्तव
बड़ी ख़बर है
जैसलमेर में बारिश होना किसी दिन
या चेरापूँजी में बारिश न होना
ख़बरें हमेशा
शहर की जलवायु के विपरीत होती हैं
मेरे साहब ने बनाया मुझे ख़बर एक दिन
— ‘कितनी अच्छी अंग्रेज़ी लिख लेता है यह किरानी’
मैं बड़े चाव से पढ़ा गया दफ़्तर में उस रोज़
समय के बवण्डर में घिरनी बनी तुम
कभी ख़बर नहीं बन पाई
किसी ने पढ़ा नहीं तुम्हें
क्या अब भी सोचती हो
मेरे सीने पर सिर रखकर सोने की
मैंने चाहा था इधर एक दिन
तुम्हारा हाथ अपने हाथ में लेने को
और एक ख़बर बनते-बनते रह गई
एक दारोग़ा ने बचाई जान प्रेमी की
और दारोग़ा ख़बर हो गया
प्रेमी का कुछ पता नहीं
हालाँकि उसे भी ख़बर बन जाना था बचकर
कल वह लड़का नहीं आया कचरा लेने
उसे कुत्ते ने काट लिया है कूड़ा चुनते वक़्त
न लड़का ख़बर में है न कुत्ता
ख़बर में है एक बूढ़ा इन दिनों
सुनते हैं, वह जवानों से भी ज़्यादा है जवान
जबकि जवान ख़बरों में नहीं हैं
वे असमय होते जा रहे हैं बूढ़े
तुम ग़ौर से पढ़ना अख़बार
परखना एक-एक ख़बर को
और जान लेना
जो ख़बरों में नहीं है
वही रोज़मर्रा हमारा
जानना यह भी
राजा को पता है ख़बर और जलवायु का सम्बन्ध
वह गढ़ता है ख़बरें
कि हो आभास जलवायु-परिवर्तन का
ख़बरनवीस करते हैं सहयोग समर्पित
तुम समझना इन साज़िशों को
ख़बरों से भ्रमित मत होना, दोस्त !