भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

रोज़ मुझको न याद आया कर / चाँद शुक्ला हदियाबादी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

रोज़ मुझको न याद आया कर
सब्र मेरा न आज़माया कर

रूठ जाती है नींद आँखों से
मेरे ख़्वाबों में तू न आया कर

भोर के भटके ऐ मुसाफ़िर सुन
दिन ढले घर को लौट आया कर

दिल के रखने से दिल नहीं फटता
दिल ही रखने को मुस्कुराया कर

राज़े दिल खुल न जाए लोगों पर
शेर मेरे न गुनगुनाया कर

ख़ुद को ख़ुद की नज़र भी लगती है
आईना सामने न लाया कर

रेत पे लिख के मेरा नाम अक्सर
बार बार इसको मत मिटाया कर

दोस्त होते हैं `चाँद’ शीशे के
दोस्तों को न आज़माया कर