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रोटी का सम्मान / प्रभुदयाल श्रीवास्तव

गोल गोल रोटी अलबेली
कितनी प्यारी लगती है
बिना शोरगुल किये बेचारी
गर्म तवे पर सिकती है|

त्याग और बलिदान देखिये
कितना भारी रोटी का
औरों की खातिर जल जाना
उसकी बोटी बोटी का|

बड़े प्यार से थाली में रख
जब हम रोटी खाते हैं
याद कहाँ उसकी कुर्वानी
कभी लोग रख पाते हैं|

इसीलिये जानो समझो
रोटी की राम कहानी को
नमन करो दोनों हाथों से
इस रोटी बलिदानी को|

गेहूं पिसकर आटा बनता
चलनी में चाला जाता
ठूंस ठूंस कर बड़े कनस्तर‌
पीपे में डाला जाता|

फिर मन चाहा आटा लेकर‌
थाली में गूंथा जाता
ठोंक पीट की सारी पीढ़ा
वह हँस‌ हँसकर सह जाता|

अब तक जो आटा पुल्लिंग था
वह स्त्री लिंग हो जाता
स्त्रीलिंग बनने पर उसका
लोई नाम रखा जाता|

हाथों से उस लोई पर‌
कसकर आघात किये जाते
पटे और बेलन के द्वारा
दो दो हाथ किये जाते|

बेली गई गोल रोटी को
गर्म तवा पर रखते हैं
रोटी के अरमान आँच पर‌
रोते और बिलखते हैं|

कहीं कहीं तो तंदूरों में
सीधे ही झोंकी जाती
सोने जैसी तपकर वह‌
तंदूरी रोटी कहलाती|

जिस रोटी के बिना आदमी
कुछ दिन भी न रह पाता
उस रोटी को बनवाने में
कहर किस तरह बरपाता|

इसलिये आओ सब मिलकर‌
रोटी का गुणगान करें
जहाँ मिले रोटी रख माथे
रोटी का सम्मान करें|