गोल गोल रोटी अलबेली
कितनी प्यारी लगती है
बिना शोरगुल किये बेचारी
गर्म तवे पर सिकती है|
त्याग और बलिदान देखिये
कितना भारी रोटी का
औरों की खातिर जल जाना
उसकी बोटी बोटी का|
बड़े प्यार से थाली में रख
जब हम रोटी खाते हैं
याद कहाँ उसकी कुर्वानी
कभी लोग रख पाते हैं|
इसीलिये जानो समझो
रोटी की राम कहानी को
नमन करो दोनों हाथों से
इस रोटी बलिदानी को|
गेहूं पिसकर आटा बनता
चलनी में चाला जाता
ठूंस ठूंस कर बड़े कनस्तर
पीपे में डाला जाता|
फिर मन चाहा आटा लेकर
थाली में गूंथा जाता
ठोंक पीट की सारी पीढ़ा
वह हँस हँसकर सह जाता|
अब तक जो आटा पुल्लिंग था
वह स्त्री लिंग हो जाता
स्त्रीलिंग बनने पर उसका
लोई नाम रखा जाता|
हाथों से उस लोई पर
कसकर आघात किये जाते
पटे और बेलन के द्वारा
दो दो हाथ किये जाते|
बेली गई गोल रोटी को
गर्म तवा पर रखते हैं
रोटी के अरमान आँच पर
रोते और बिलखते हैं|
कहीं कहीं तो तंदूरों में
सीधे ही झोंकी जाती
सोने जैसी तपकर वह
तंदूरी रोटी कहलाती|
जिस रोटी के बिना आदमी
कुछ दिन भी न रह पाता
उस रोटी को बनवाने में
कहर किस तरह बरपाता|
इसलिये आओ सब मिलकर
रोटी का गुणगान करें
जहाँ मिले रोटी रख माथे
रोटी का सम्मान करें|