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रोटी की लिपि / रुचि बहुगुणा उनियाल
Kavita Kosh से
रोटी ही थी भाषणों का अहम मुद्दा
प्रदर्शन में भी रोटी ही थी हर बैनर तले
त्यौहारों में भी रोटी ही पाने की होड तो थी न
मौसमों के बदलने पर
भरे पेट ने बदले कपड़े... बदला फ़ैशन!
पर ख़ाली पेट के लिए
रोटी से बड़ा कोई फ़ैशन कभी नहीं रहा!
बड़े से बड़ा जोखिम भी
रोटी के लिए उठाया पेट ने
भरी जवानी में जहाँ
आने चाहिए प्रेमी /प्रेमिका के स्वप्न
वहां ख़ाली पेट को
सपने में भी रोटी ही नज़र आई!
तन ढकने की ज़रूरत
सिर ढकने की ज़रूरत से भी
बड़ी ज़रूरत... पेट भरने की रही हमेशा!
इस तरह संसार की
हर समस्या से बड़ी और विकराल समस्या भूख
और हर समाधान से बड़ा समाधान रोटी रही,
सब भाषाओं से सरल भूख की भाषा
और हर लिपि से कठिन रोटी की लिपि रही!