रोटी पकाते हुए / एमीली वेहाहेन / अनिल जनविजय
नौकरों ने रविवार को रोटी बनाई
सबसे बढ़िया दूध डालकर, सबसे अच्छे क़िस्म के गेहूँ का आटा गूँधा
आस्तीन से कोहनी बाहर निकालकर, अपने सिर को टेढ़ा करके
वो काम करते रहे और उनका पसीना बहता रहा ।
उँगलियों में एक लय थी, उनका पूरा शरीर गतिमान था,
हाथों में प्रवाह था, संचार था, तरन्नुम था, अविराम था,
उनकी बड़ी राक्षसी उँगलियाँ आटे को यूँ गूँध रही थीं
ज्यों मल रही हों स्तनों का गोश्त, मचा हुआ कोहराम था ।
लकड़ियाँ जल रही थीं तन्दूर में, अंगारों में बदल गई थीं
दो फ़ीट चौड़ा, दो फ़ीट गहरा तन्दूर बहुत गरम था
आटा बदल गया रोटियों की शक़्ल में जब, वो उससे चिपक गई थीं
तन्दूर का मुँह खुला था, जिसमें से लपटें ऊपर उठ रही थीं
जैसे लाल कुत्तों का कोई गर्म बड़ा झुण्ड उछल रहा हो
दहाड़ते हुए वे उनका मुँह नोचने को एक साथ ठठ रही थीं।
मूल फ़्रांसीसी से अनुवाद : अनिल जनविजय
लीजिए, अब यही कविता मूल फ़्रांसीसी भाषा में पढ़िए
Emile Verhaeren
Cuisson du pain
Les servantes faisaient le pain pour les dimanches,
Avec le meilleur lait, avec le meilleur grain,
Le front courbé, le coude en pointe hors des manches,
La sueur les mouillant et coulant au pétrin.
Leurs mains, leurs doigts, leur corps entier fumait de hâte,
Leur gorge remuait dans les corsages pleins.
Leurs deux doigts monstrueux pataugeaient dans la pâte
Et la moulaient en ronds comme la chair des seins.
Le bois brûlé se fendillait en braises rouges
Et deux par deux, du bout d’une planche, les gouges
Dans le ventre des fours engouffraient les pains mous.
Et les flammes, par les gueules s’ouvrant passage,
Comme une meute énorme et chaude de chiens roux,
Sautaient en rugissant leur mordre le visage.
Émile Verhaeren, Les Flamandes