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रोटी / हरेराम बाजपेयी 'आश'

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आदमी रोटी के लिये,
सुबह से शाम करता है,
शाम से सुबह करता है,
रोटी खाता है, पेट भरटा है।
कुत्ता भी रोटी खाता है,
देने वाले के सामने दुम हिलाता है।
उस दिन मंदिर के नुक्कड़ पर,
मैंने एक अजीब घटना देखी,
आदमी कटौरी में रोटी लेकर आया,
जो उसके खाने से बच गई थी,
या फिर कुत्ते के लिये बचाई गई थी,
आदमी ने
कुत्ते को तू-तू करके प्यार से बुलाया,
कुत्ता भ दुम हिलाता हुआ उसके पास आया,
आदमी ने रोटी कुत्ते के सामने रख दी,
ले खाले कहा, और एक डकार ली।
मैंने देखा,
कुत्ता रोटी खाने की बजाय,
वापस अपनी जगह बैठ जाता है।
रोटी आदमी ने खाई थी,
पर कुत्ते ने नहीं खाई,
बात मेरे समझ में नहीं आई।
मैं दार्शनिक सा देख रहा था,
रोटी, आदमी और कुत्ते के बीच पड़ी थी,
जो समबंधों की के कड़ी थी,

क्या वह रोटी खाने योगय नहीं थी,
जिसे आदमी पचा गया,
पर कुत्ते ने नहीं खाई
तभी मुझे गरीबी की याद आई,
जिसके कारण यहाँ,
आदमी का स्टार
कुत्ते से बदतर है,
शायद हमारे देश का यही सही स्तर है?
जहाँ आदमी रोटी खाता है,
रोटी के लिए ललचाता है,
गिरता है, मारता है,
और कभी-कभी ,
दूसरों के मुंह की छीन भी लेता हा,
पर कुत्ता लालची नहीं होता,
आदमी की तरह,
वह भूखा रह सकता है,
पर रोटी के लिये किसी को काट नहीं सकता।
आदमी भी रोटी खाता है,
कुत्ता भी रोटी खाता है,
पर रोटी कभी-कभी इंसान को खा जाती है,
तब आदमी, आदमी नहीं रहता,
पर कुत्ता, कुत्ता बना रहता है,
क्योंकि वह रोटी के लिए,
गम नहीं करता,
रोटी के लिये आदमी मारता है,
कुत्ता नहीं मरता।
और रोटी अब भी,
आदमी और कुत्ते के बीच पड़ी है,
जो दोनों के बीच,
समबंधों की एक कड़ी है॥