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रोते रोते कौन हंसा था / नासिर काज़मी
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रोते रोते कौन हंसा था
बारिश में सूरज निकला था
चलते हुए आँधी आई थी
रस्ते में बादल बरसा था
हम जब क़स्बे में उतरे थे
सूरज कब का डूब चुका था
कभी कभी बिजली हंसती थी
कहीं कहीं छींटा पड़ता था
तेरे साथ तिरे हमराही
मेरे साथ मिरा रस्ता था
रंज तो है लेकिन ये खुशी है
अब के सफ़र तिरे साथ किया था।