भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

रोने का क़सीदा / फ़ेदेरिको गार्सिया लोर्का

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मैंने अपने छज्जे की खिड़की बन्द कर दी है
क्योंकि मैं रोना सुनना नहीं चाहता
लेकिन मटमैली दीवारों के पीछे से रोने के सिवा कुछ सुनाई नहीं देता

बहुत कम फ़रिश्ते हैं जो गाते हैं
बहुत ही कम कुत्ते हैं जो भौंकते हैं

मेरे हाथ की हथेली में एक हज़ार वायलिन समा जाते हैं

लेकिन रोना एक विशालकाय कुत्ता है
रोना एक विराट फ़रिश्ता है
रोना एक विशाल वायलिन है

आँसू हवा को घोंट देते हैं
और रोने के सिवा कुछ सुनाई नहीं देता !

अंग्रेज़ी से अनुवाद : विष्णु खरे