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रोशनी की साँकल / शलभ श्रीराम सिंह
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हँसती सुबह !
लहराते नीले ताल !
गुलाब की पंखुरियों में बन्द चावल !
आकाश - ढकी दो पहाड़ियाँ !
रात के गर्म सिलवटी बिस्तरे पर
सोया हुआ बच्चा
नींद में सिसकियाँ ले रहा है !
रोशनी की साँकल हिल रही है !
शाम से ही
उबल रहे हैं दो महासागर !
बरस रहे हैं दो सावन !
(1964)