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रो‍ओ मत / महेंद्रसिंह जाडेजा

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मेरे शव को उठाओ
रो‍ओ मत,
मेरे शव पर फूलों की ज़रूरत नहीं
मौत कभी भी फूलों को नहीं सूँघती ।

रो‍ओ मत,
तुम्हारे आँसुओं से मेरा शव नहीं तिरेगा ।
तुम्हारे हाथ में कुछ नहीं ।

तुम्हारा हाथ
मेरे शव के हाथ की ही तरह खाली है,
इसमें कभी भी कुछ नहीं होता ।

तुम्हारे साथ बिताया हुआ समय
मेरे शव के खोखलेपन में छलकता है ।
मेरे शव को उठाओ,

रो‍ओ मत,
मुझे भय है कि
परिचय की गंध से
मेरा शव चलने लगेगा ।

रो‍ओ नहीं
मेरे शव को उठाओ ।

मूल गुजराती भाषा से अनुवाद : क्रान्ति